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मिरे वजूद में थे दूर तक अँधेरे भी | शाही शायरी
mere wajud mein the dur tak andhere bhi

ग़ज़ल

मिरे वजूद में थे दूर तक अँधेरे भी

खलील तनवीर

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मिरे वजूद में थे दूर तक अँधेरे भी
कहीं कहीं पे छुपे थे मगर सवेरे भी

निकल पड़े थे तो फिर राह में ठहरते क्या
यूँ आस-पास कई पेड़ थे घनेरे भी

ये शहर-ए-सब्ज़ है लेकिन बहुत उदास हुए
ग़मों की धूप में झुलसे हुए थे डेरे भी

हुदूद-ए-शहर से बाहर भी बस्तियाँ फैलीं
सिमट के रह गए यूँ जंगलों के घेरे भी

समुंदरों के ग़ज़ब को गले लगाए हुए
कटे-फटे थे बहुत दूर तक जज़ीरे भी