EN اردو
मिरे वजूद के आँगन में ख़्वाब रौशन था | शाही शायरी
mere wajud ke aangan mein KHwab raushan tha

ग़ज़ल

मिरे वजूद के आँगन में ख़्वाब रौशन था

अाज़म ख़ुर्शीद

;

मिरे वजूद के आँगन में ख़्वाब रौशन था
सवाद-ए-हिज्र में ताज़ा गुलाब रौशन था

कली कली की ज़बाँ पर अज़ाब रौशन था
ऐ हम-सफ़र दिल-ए-ख़ाना-ख़राब रौशन था

ये किस हिसाब में झेली है मैं ने दर-ब-दरी
तिरे सवाल-ए-बदन पर जवाब रौशन था

मैं अपनी आग से खेला मैं अपने आप जला
हिसार-ए-लम्स में उतरा सहाब रौशन था

तू रत-जगों की मसाफ़त में गुम हुआ 'ख़ुर्शीद'
इक आफ़्ताब पस-ए-आफ़्ताब रौशन था