मिरे शानों पे उन की ज़ुल्फ़ लहराई तो क्या होगा
मोहब्बत को ख़ुनुक साए में नींद आई तो क्या होगा
परेशाँ हो के दिल तर्क-ए-तअल्लुक़ पर है आमादा
मोहब्बत में ये सूरत भी न रास आई तो क्या होगा
सर-ए-महफ़िल वो मुझ से बे-सबब आँखें चुराते हैं
कोई ऐसे में तोहमत उन के सर आई तो क्या होगा
मुझे पैहम मोहब्बत की नज़र से देखने वाले
मिरे दिल पर तिरी तस्वीर उतर आई तो क्या होगा
बहुत मसरूर हैं वो छीन कर दिल का सुकूँ 'उनवाँ'
हुजूम-ए-ग़म में भी मुझ को हँसी आई तो क्या होगा
![mere shanon pe unki zulf lahrai to kya hoga](/images/pic02.jpg)
ग़ज़ल
मिरे शानों पे उन की ज़ुल्फ़ लहराई तो क्या होगा
उनवान चिश्ती