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मिरे रोग का न मलाल कर मिरे चारा-गर | शाही शायरी
mere rog ka na malal kar mere chaara-gar

ग़ज़ल

मिरे रोग का न मलाल कर मिरे चारा-गर

शहज़ाद नय्यर

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मिरे रोग का न मलाल कर मिरे चारा-गर
मैं बड़ा हुआ उसे पाल कर मिरे चारा-गर

सभी दर्द चुन मिरे जिस्म से किसी इस्म से
मिरा अंग अंग बहाल कर मिरे चारा-गर

मुझे सी दे सोज़न-ए-दर्द रिश्ता-ए-ज़र्द से
मुझे ज़ब्त-ए-ग़म से बहाल कर मिरे चारा-गर

मुझे चीर नश्तर-ए-इश्क़ सोज़-ए-सरिश्क से
मिरा इंदिमाल-ए-मुहाल कर मिरे चारा-गर

ये बदन के आरज़ी घाव हैं उन्हें छोड़ दे
मिरे ज़ख़्म-ए-दिल का ख़याल कर मिरे चारा-गर

फ़क़त एक क़तरा-ए-अश्क मेरा इलाज है
मुझे मुब्तला-ए-मलाल कर मिरे चारा-गर

में जहान दर्द में खो गया तुझे क्या मिला
मुझे इम्तिहान में डाल कर मिरे चारा-गर

मुझे अपने ज़ख़्म की ख़ुद भी कोई ख़बर नहीं
सो न मुझ से कोई सवाल कर मिरे चारा-गर

तिरा हाल देख के रोएगा तिरा चारा-गर
मिरा दिल न देख निकाल कर मिरे चारा-गर