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मिरे नज़'अ को मत उस से कहो हुआ सो हुआ | शाही शायरी
mere naza ko mat us se kaho hua so hua

ग़ज़ल

मिरे नज़'अ को मत उस से कहो हुआ सो हुआ

वली उज़लत

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मिरे नज़'अ को मत उस से कहो हुआ सो हुआ
कि दिल-दहिन्दा जियो या मरो हुआ सो हुआ

जला दिया जो पतंग अब न रो हुआ सो हुआ
ऐ शम्अ' सुब्ह को जो हो सो हो हुआ सो हुआ

दिल इस कूँ दे चुका दीवानगी न छोड़ूँगा
ऐ तिफ़लो पथरों से मारो हँसो हुआ सो हुआ

मुझे रुला के ख़ूँ आँसू न पोंछ ख़ौफ़ ये है
तू हाथ मेरे लहू से न धो हुआ सो हुआ

बिछाईं पलकें जो मैं ने न आया कह भेजा
अब आगे राह में काँटे न बो हुआ सो हुआ

किया है क़त्ल जो 'उज़लत' को अब न रो ऐ यार
कि सर पे हुस्न-परस्तों के जो हुआ सो हुआ