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मिरे लोग ख़ेमा-ए-सब्र में मिरे शहर गर्द-ए-मलाल में | शाही शायरी
mere log KHema-e-sabr mein mere shahr gard-e-malal mein

ग़ज़ल

मिरे लोग ख़ेमा-ए-सब्र में मिरे शहर गर्द-ए-मलाल में

असअ'द बदायुनी

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मिरे लोग ख़ेमा-ए-सब्र में मिरे शहर गर्द-ए-मलाल में
अभी कितना वक़्त है ऐ ख़ुदा इन उदासियों के ज़वाल में

कभी मौज-ए-ख़्वाब में खो गया कभी थक के रेत पे सो गया
यूँही उम्र सारी गुज़ार दी फ़क़त आरज़ू-ए-विसाल में

कहीं गर्दिशों के भँवर में हूँ किसी चाक पर मैं चढ़ा हुआ
कहीं मेरी ख़ाक जमी हुई किसी दश्त-ए-बर्फ़-मिसाल में

ये हवा-ए-ग़म ये फ़ज़ा-ए-नम मुझे ख़ौफ़ है कि न डाल दे
कोई पर्दा मेरी निगाह पर कोई रख़्ना तेरे जमाल में