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मिरे लिए मिरी पर्वाज़ के लिए कम है | शाही शायरी
mere liye meri parwaz ke liye kam hai

ग़ज़ल

मिरे लिए मिरी पर्वाज़ के लिए कम है

शौकत मेहदी

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मिरे लिए मिरी पर्वाज़ के लिए कम है
हज़ार जस्त तग-ओ-ताज़ के लिए कम है

ये दो जहान भी मेरे लिए नहीं काफ़ी
ये इंतिहा मिरे आग़ाज़ के लिए कम है

ये मेरे क़त्ल पे आमादा कौन दिखता है
कि नारवा भी दर-अंदाज़ के लिए कम है

कोई सदा है कि पी है किसी पपीहे की
गुमान ये किसी आवाज़ के लिए कम है

रवाना की तो गई है प क्या किया जाए
कि ये कुमक मिरे दम-साज़ के लिए कम है

मुझे ग़ज़ल के नए ख़ाल-ओ-ख़द बनाने हैं
मिरा हुनर मिरे एजाज़ के लिए कम है

इलाज-ए-चारा-गराँ आम कीजिए 'मेहदी'
तमाम उम्र भी इस कॉज़ के लिए कम है