मिरे कमरे में पूरी चाँदनी है
फ़क़त तेरी कमी बाक़ी रही है
मैं सहरा में तसल्ली से रहूँगा
मुसलसल तिश्नगी ही तिश्नगी है
ख़मोशी ओढ़ कर बैठे हैं सब पेड़
ये बारिश आज कितनी ख़ुश्क सी है
हवा आई है किस दुनिया से हो कर
हर इक टहनी शजर की काँपती है
अभी तो सर्दियों का दौर होगा
फ़ज़ा रोना था जितना रो चुकी है
मैं हर दीपक बुझाता जा रहा हूँ
मेरी दुनिया में इतनी रौशनी है
दरीचा अब नहीं खुलता तुम्हारा
नज़र लेकिन किसी की मानती है
वो जो हस्सास लड़का मर गया था
अब उस का शौक़ केवल शाइरी है
कभी ठहरा नहीं फूलों का मौसम
दिलों का टूट जाना क़ुदरती है
ग़ज़ल
मिरे कमरे में पूरी चाँदनी है
दिनेश नायडू