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मिरे कहने में पटवारी नहीं है | शाही शायरी
mere kahne mein paTwari nahin hai

ग़ज़ल

मिरे कहने में पटवारी नहीं है

राजेन्द्र कलकल

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मिरे कहने में पटवारी नहीं है
ज़मीं मेरी है सरकारी नहीं है

समुंदर तू हुआ खारी तो कैसे
नदी जब कोई भी खारी नहीं है

भले इल्ज़ाम ख़ुद पर ले लिया है
मगर ग़लती मिरी सारी नहीं है

ज़मीं पर चाहे कुछ बन जा तू लेकिन
ख़ुदा बनना समझदारी नहीं है

दिखाऊँ तो हुनर कैसे मैं 'कलकल'
अभी आई मिरी बारी नहीं है