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मिरे जुनूँ में मिरी वफ़ा में ख़ुलूस की जब कमी मिलेगी | शाही शायरी
mere junun mein meri wafa mein KHulus ki jab kami milegi

ग़ज़ल

मिरे जुनूँ में मिरी वफ़ा में ख़ुलूस की जब कमी मिलेगी

ज़िया फ़तेहाबादी

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मिरे जुनूँ में मिरी वफ़ा में ख़ुलूस की जब कमी मिलेगी
चमन गिरफ़्त-ए-ख़िज़ाँ में होगा बहार उजड़ी हुई मिलेगी

जवाँ है हिम्मत है अज़्म-ए-मोहकम नज़र उठाएँ तो अहल-ए-दानिश
अलम के तारीक उफ़ुक़ पे रौशन शुआ-ए-उम्मीद भी मिलेगी

तसव्वुर उस माह-रू का होगा कभी तो दिल में ज़िया-ब-दामन
कभी तो ज़ुल्मत-कदे में हम को खुली हुई चाँदनी मिलेगी

मिरा पता पूछ कर न तोड़ो सुकूत मेरा जुमूद मेरा
बुलंद महलों में रहने वालो कहाँ मिरी झोंपड़ी मिलेगी

ये कोर-चश्मी का है तमाशा कि ज़ुल्मतों की तहें जमी हैं
नज़र से पर्दा हटा के देखें यहाँ वहाँ रौशनी मिलेगी

रिवायती पैकर-ए-ग़ज़ल में भरा है रंग-ए-जदीद मैं ने
'ज़िया' मिरे शे'र में मुहय्या कोई नई बात ही मिलेगी