मिरे ही दिल को अपना घर समझना
उसे तुम ताज से बेहतर समझना
न करना ख़ैर-ख़्वाही तुम किसी की
जो बेहतर हो उसे बेहतर समझना
न इतराना कभी शोहरत पे अपनी
सदा अपने को तुम अहक़र समझना
उड़ा दे आदमी को जो बमों से
उसे चंगेज़ का लश्कर समझना
है धोका देना अपने आप को बस
किसी इंसान को बे-पर समझना
बहुत नुक़्सान-देह होगा वो साबित
चमकती रेत को मंज़र समझना
शब-ए-ग़म में सितारों को ऐ 'इबरत'
सुकूँ-परवर नहीं अख़गर समझना
ग़ज़ल
मिरे ही दिल को अपना घर समझना
इबरत बहराईची