मिरे हाथ की सब दुआ ले गया
वो क्या लेने आया था क्या ले गया
फ़क़त रो रहा हूँ किसे याद है
कोई छीन कर मुझ से क्या ले गया
कि जब शहर में कुछ न बाक़ी बचा
समुंदर मुझे भी बुला ले गया
अगर खो गई कोई शय भी तो क्या
बचा कर वो अपनी अना ले गया
'शमीम' उस के जाने का कुछ ग़म नहीं
मगर बीच का रास्ता ले गया
ग़ज़ल
मिरे हाथ की सब दुआ ले गया
शमीम फ़ारूक़ी