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मिरे दिल को मोहब्बत ख़ूब गरमाए तो अच्छा हो | शाही शायरी
mere dil ko mohabbat KHub garmae to achchha ho

ग़ज़ल

मिरे दिल को मोहब्बत ख़ूब गरमाए तो अच्छा हो

ज़हीर अहमद ताज

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मिरे दिल को मोहब्बत ख़ूब गरमाए तो अच्छा हो
ख़लिश बढ़ कर इलाज-ए-दर्द बन जाए तो अच्छा हो

मिरे अश्क-ए-मोहब्बत से दिलों के मैल धुल जाएँ
मिरा ग़म ज़िंदगी के काम आ जाए तो अच्छा हो

हर इक मज़लूम को मेरी हिमायत का सहारा हो
मिरा ज़ौक़-ए-अमल उस राह पर आए तो अच्छा हो

मिरे सोज़-ए-दरूँ से जगमगाए हस्ती-ए-आलम
मिरा नूर-ए-बसीरत आम हो जाए तो अच्छा हो

अँधेरी शब है शम-ए-दिल फ़रोज़ाँ कीजिए यारो
सितारों की चमक कुछ और बढ़ जाए तो अच्छा हो

ज़बाँ पर बात भूले से न आए शिकवा-ए-दिल की
तग़ाफ़ुल पर कभी उन के न हर्फ़ आए तो अच्छा हो

हक़ीक़त ख़ुद को मनवा ले ज़बान-ए-बे-ज़बानी से
ख़ुद उन का दिल निगाहों से जो शरमाए तो अच्छा हो

मिरी बेचैनियों को चैन कुछ तो आ ही जाएगा
तबीब-ए-इश्क़ मुझ को देखने आए तो अच्छा हो

उन्हें रंगीनियों से इक शग़फ़ ऐ 'ताज' रहता है
मिरी बेचैनियों में रंग भर जाए तो अच्छा हो