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मिरे दिल की धड़क उस के तबस्सुम पर गराँ क्यूँ हो | शाही शायरी
mere dil ki dhaDak uske tabassum par garan kyun ho

ग़ज़ल

मिरे दिल की धड़क उस के तबस्सुम पर गराँ क्यूँ हो

मंज़ूर हुसैन शोर

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मिरे दिल की धड़क उस के तबस्सुम पर गराँ क्यूँ हो
मैं अफ़्साना हूँ उस का वो मिरा अफ़्साना-ख़्वाँ क्यूँ हो

मिरे काम आ गई आख़िर मिरी काशाना-बर-दोशी
लपकती बिजलियों की ज़द पे मेरा आशियाँ क्यूँ हो

किनारों से गुज़र जाना ही तूफ़ानों की फ़ितरत है
जहाँ दुनिया ठहर जाए क़दम मेरा वहाँ क्यूँ हो

तिरा जल्वा भी जब तेरा ही पर्दा होता जाता है
तो फिर मेरी निगाहों पर निगाहों का गुमाँ क्यूँ हो

न मैं वारफ़्ता-ए-मुतरिब न मैं जाँ-दादा-ए-साक़ी
अगर महफ़िल से उठ जाऊँ तो महफ़िल बद-गुमाँ क्यूँ हो

मैं जिस आलम में हूँ अपनी जगह ऐ 'शोर' तन्हा हूँ
जुदा हो जिस की मंज़िल वो रहीन-ए-कारवाँ क्यूँ हो