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मिरे आँसुओं पे नज़र न कर मिरा शिकवा सुन के ख़फ़ा न हो | शाही शायरी
mere aansuon pe nazar na kar mera shikwa sun ke KHafa na ho

ग़ज़ल

मिरे आँसुओं पे नज़र न कर मिरा शिकवा सुन के ख़फ़ा न हो

कैफ़ इक्रामी

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मिरे आँसुओं पे नज़र न कर मिरा शिकवा सुन के ख़फ़ा न हो
उसे ज़िंदगी का भी हक़ नहीं जिसे दर्द-ए-इश्क़ मिला न हो

ये इनायतें ये नवाज़िशें मिरे दर्द-ए-दिल की दवा नहीं
मुझे उस नज़र की तलाश है जो अदा-शनास-ए-वफ़ा न हो

तुझे क्या बताऊँ मैं बे-ख़बर कि है दर्द-ए-इश्क़ में क्या असर
ये है वो लतीफ़ सी कैफ़ियत जो ज़बाँ तक आए अदा न हो

ये शराब ज़ेर-ए-हसीं-घटा जो है 'कैफ़' नाज़िश-ए-मै-कदा
किसी तिश्ना-काम की आरज़ू किसी तिश्ना-लब की दुआ न हो