मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए
तू दोस्त है तो नसीहत न कर ख़ुदा के लिए
वो कश्तियाँ मिरी पतवार जिन के टूट गए
वो बादबाँ जो तरसते रहे हवा के लिए
बस एक हूक सी दिल से उठे घटा की तरह
कि हर्फ़ ओ सौत ज़रूरी नहीं दुआ के लिए
जहाँ में रह के जहाँ से बराबरी की ये चोट
इक इम्तिहान-ए-मुसलसल मिरी अना के लिए
नमीदा-ख़ू है ये मिट्टी हर एक मौसम में
ज़मीन-ए-दिल है तरसती नहीं घटा के लिए
मैं तेरा दोस्त हूँ तू मुझ से इस तरह तो न मिल
बरत ये रस्म किसी सूरत-आश्ना के लिए
मिलूँगा ख़ाक में इक रोज़ बीज के मानिंद
फ़ना पुकार रही है मुझे बक़ा के लिए
मह ओ सितारा ओ ख़ुर्शीद ओ चर्ख़ हफ़्त-इक़्लीम
ये एहतिमाम मिरे दस्त-ए-ना-रसा के लिए
जफ़ा जफ़ा ही अगर है तो रंज क्या हो 'शाज़'
वफ़ा की पुश्त-पनाही भी हो जफ़ा के लिए
ग़ज़ल
मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए
शाज़ तमकनत