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मिरा वजूद शुमार-ए-नफ़स में आया नहीं | शाही शायरी
mera wajud shumar-e-nafas mein aaya nahin

ग़ज़ल

मिरा वजूद शुमार-ए-नफ़स में आया नहीं

आक़िब साबिर

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मिरा वजूद शुमार-ए-नफ़स में आया नहीं
तमाम-उम्र मैं साँसों के बस में आया नहीं

नुक़ूश-ए-लम्स-ए-हक़ीक़त मिटाने वाला था
मगर वो ख़्वाब मिरी दस्तरस में आया नहीं

सवाल ये है कि दश्त-ए-बदन का क्या होगा
अगर जुनूँ का परिंदा क़फ़स में आया नहीं

अजब नहीं कि ये बाहें कुचल के रख देतीं
भला हुआ वो हिसार-ए-हवस में आया नहीं

ये कौन है जो हमें तूल देता रहता है
ये कौन है जो ज़द-ए-पेश-ओ-पस में आया नहीं