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मिरा महबूब सब का मन हरन है | शाही शायरी
mera mahbub sab ka man haran hai

ग़ज़ल

मिरा महबूब सब का मन हरन है

सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़

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मिरा महबूब सब का मन हरन है
नज़र कर देख वो आहू नैन है

नहीं अब जग में वैसा और साजन
मुझे सूरत-शनासी बीच फ़न है

सबी दीवाने हैं उस मह-लक़ा के
मगर वो दिल-रुबा जादू नयन है

करे रश्क-ए-गुलिस्ताँ दिल को 'फ़ाएज़'
मिरा साजन बहार-ए-अंजुमन है