मिरा महबूब सब का मन हरन है
नज़र कर देख वो आहू नैन है
नहीं अब जग में वैसा और साजन
मुझे सूरत-शनासी बीच फ़न है
सबी दीवाने हैं उस मह-लक़ा के
मगर वो दिल-रुबा जादू नयन है
करे रश्क-ए-गुलिस्ताँ दिल को 'फ़ाएज़'
मिरा साजन बहार-ए-अंजुमन है
ग़ज़ल
मिरा महबूब सब का मन हरन है
सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़