EN اردو
मिरा माज़ी मिरी नफ़ी ही तो है | शाही शायरी
mera mazi meri nafi hi to hai

ग़ज़ल

मिरा माज़ी मिरी नफ़ी ही तो है

सय्यदा कौसर मनव्वर शरक़पुरी

;

मिरा माज़ी मिरी नफ़ी ही तो है
हर क़दम पर कोई कमी ही तो है

इल्म को रौशनी से क्या मतलब
ये अँधेरों से दिल-लगी ही तो है

मा-सिवा था न मावरा कोई
कोई ताक़त कहीं छुपी ही तो है

दिल-नशीं बात उस की लौ सी थी
शम्अ' इमशब वही जली ही तो है

बात कहने में कुछ नहीं 'कौसर'
ख़ुश्क नज़रों में कुछ नमी ही तो है