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मिरा दीवानगी पर इस क़दर मग़रूर हो जाना | शाही शायरी
mera diwangi par is qadar maghrur ho jaana

ग़ज़ल

मिरा दीवानगी पर इस क़दर मग़रूर हो जाना

मैकश नागपुरी

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मिरा दीवानगी पर इस क़दर मग़रूर हो जाना
कि रफ़्ता रफ़्ता हद्द-ए-आगही से दूर हो जाना

पता देता है गुमराही-ए-रहगीर-ए-मोहब्बत का
बिछड़ना और बिछड़ कर क़ाफ़िले से दूर हो जाना

कहीं दुनिया-ए-उल्फ़त को तह-ओ-बाला न कर डाले
ग़ुरूर-ए-हुस्न के आईन का दस्तूर हो जाना

अज़ल से तीरा-बख़्त-ए-इश्क़ के हिस्से में आया है
शब-ए-ग़म-ए-दिल का जल जल कर चराग़-ए-तूर हो जाना

मिरी दानिस्त-ए-नाक़िस में कमाल-ए-ख़ुद-नुमाई है
ज़मीं से आसमाँ तक आप का मशहूर हो जाना

किसी का जश्न-ए-आज़ादी मनाना है बहुत आसाँ
मगर दुश्वार है ग़ारत-गर-ए-जम्हूर हो जाना

रगों का ख़ून रफ़्ता रफ़्ता ठंडा हो चला 'मैकश'
मिरे दर्द-ए-जिगर को आ गया काफ़ूर हो जाना