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किस शाम से उठा था मिरे दिल में दर्द सा | शाही शायरी
kis sham se uTha tha mere dil mein dard sa

ग़ज़ल

किस शाम से उठा था मिरे दिल में दर्द सा

मीर तक़ी मीर

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किस शाम से उठा था मिरे दिल में दर्द सा
सो हो चला हूँ पेशतर-अज़-सुब्ह सर्द सा

बैठा हूँ जूँ ग़ुबार-ए-ज़ईफ़ अब वगर्ना में
फिरता रहा हूँ गलियों में आवारा-गर्द सा

क़स्द-ए-तरीक़-ए-इश्क़ किया सब ने बा'द-ए-क़ैस
लेकिन हुआ न एक भी उस रह-नवर्द सा

हाज़िर यराक़-ए-बे-मज़गी किस घड़ी नहीं
मा'शूक़ कुछ हमारा है आशिक़-नबर्द सा

क्या 'मीर' है यही जो तिरे दर पे था खड़ा
नमनाक-चश्म-ओ-ख़ुश्क-लब ओ रंग ज़र्द सा