नई तर्ज़ों से मयख़ाने में रंग-ए-मय झलकता था
गुलाबी रोती थी वाँ जाम हंस हंस कर छलकता था
तिरे उस ख़ाक उड़ाने की धमक से ऐ मरी वहशत
कलेजा रेग-ए-सहरा का भी दस दस गज़ थिलक्ता था
गई तस्बीह उस की नज़्अ' में कब 'मीर' के दिल से
उसी के नाम की सुमरन थी जब मुनक्का ढलकता था

ग़ज़ल
नई तर्ज़ों से मयख़ाने में रंग-ए-मय झलकता था
मीर तक़ी मीर