कब तलक ये सितम उठाइएगा
एक दिन यूँही जी से जाइएगा
शक्ल तस्वीर-ए-बे-ख़ुदी कब तक
कसो दिन आप में भी आइएगा
सब से मिल चल कि हादसे से फिर
कहीं ढूँडा भी तो न पाइएगा
न मूए हम असीरी में तो नसीम
कोई दिन और बाव खाइएगा
कहियेगा उस से क़िस्सा-ए-मजनूँ
या'नी पर्दे में ग़म सुनाइएगा
उस के पा-बोस की तवक़्क़ो' पर
अपने तीं ख़ाक में मिलाइएगा
उस के पाँव को जा लगी है हिना
ख़ूब से हाथ उसे लगाइएगा
शिरकत-शैख़-ओ--ब्रहमन से 'मीर'
का'बा-ओ-दैर से भी जाइएगा
अपनी डेढ़ ईंट की जद्दी मस्जिद
किसी वीराने में बनाइयेगा
ग़ज़ल
कब तलक ये सितम उठाइएगा
मीर तक़ी मीर