न पूछ ख़्वाब ज़ुलेख़ा ने क्या ख़याल लिया 
कि कारवाँ का कनआँ' के जी निकाल लिया 
रह-ए-तलब में गिरे होते सर के बल हम भी 
शिकस्ता-पाई ने अपनी हमें सँभाल लिया 
रहूँ हूँ बरसों से हम दोश पर कभू उन ने 
ले मैं हाथ मिरा प्यार से न डाल लिया 
बुताँ की 'मीर' सितम वो निगाह है जिस ने 
ख़ुदा के वास्ते भी ख़ल्क़ का वबाल लिया
        ग़ज़ल
न पूछ ख़्वाब ज़ुलेख़ा ने क्या ख़याल लिया
मीर तक़ी मीर

