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न पूछ ख़्वाब ज़ुलेख़ा ने क्या ख़याल लिया | शाही शायरी
na puchh KHwab zuleKHa ne kya KHayal liya

ग़ज़ल

न पूछ ख़्वाब ज़ुलेख़ा ने क्या ख़याल लिया

मीर तक़ी मीर

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न पूछ ख़्वाब ज़ुलेख़ा ने क्या ख़याल लिया
कि कारवाँ का कनआँ' के जी निकाल लिया

रह-ए-तलब में गिरे होते सर के बल हम भी
शिकस्ता-पाई ने अपनी हमें सँभाल लिया

रहूँ हूँ बरसों से हम दोश पर कभू उन ने
ले मैं हाथ मिरा प्यार से न डाल लिया

बुताँ की 'मीर' सितम वो निगाह है जिस ने
ख़ुदा के वास्ते भी ख़ल्क़ का वबाल लिया