ना किसी से पास मेरे यार का आना गया 
बस गया मैं जान से अब उस से ये जाना गया 
कुछ न देखा फिर ब-जुज़ यक शोला-ए-पुर-पेच-ओ-ताब 
शम्अ' तक तो हम ने देखा था कि परवाना गया 
एक ही चश्मक थी फ़ुर्सत सोहबत-ए-अहबाब की 
दीदा-ए-तर साथ ले मज्लिस से पैमाना गया 
गुल खिले सद रंग तो क्या बे-परी से ए नसीम 
मुद्दतें गुज़रीं कि वो गुलज़ार का जाना गया 
दूर तुझ से 'मीर' ने ऐसा तअब खींचा कि शोख़ 
कल जो मैं देखा उसे मुतलक़ न पहचाना गया
        ग़ज़ल
ना किसी से पास मेरे यार का आना गया
मीर तक़ी मीर

