ख़ूब थे वे दिन कि हम तेरे गिरफ़्तारों में थे
ग़म-ज़दों अंदोह-गीनों ज़ुल्म के मारों में थे
दुश्मनी जानी है अब तो हम से ग़ैरों के लिए
इक समाँ सा हो गया वो भी कि हम यारों में थे
मत तबख़्तुर से गुज़र क़ुमरी हमारी ख़ाक पर
हम भी इक सर्व-ए-रवाँ के नाज़-बरदारों में थे
मर गए लेकिन न देखा तू ने ऊधर आँख उठा
आह क्या क्या लोग ज़ालिम तेरे बीमारों में थे
शैख़-जी मिंदील कुछ बिगड़ी सी है क्या आप भी
रिंदों बाँकों मय-कशों आशुफ़्ता दस्तारों में थे
गरचे जुर्म-ए-इश्क़ ग़ैरों पर भी साबित था वले
क़त्ल करना था हमें हम ही गुनहगारों में थे
इक रहा मिज़्गाँ की सफ़ में एक के टुकड़े हुए
दिल जिगर जो 'मीर' दोनों अपने ग़म-ख़्वारों में थे
ग़ज़ल
ख़ूब थे वे दिन कि हम तेरे गिरफ़्तारों में थे
मीर तक़ी मीर