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तड़पना भी देखा न बिस्मिल का अपने | शाही शायरी
taDapna bhi dekha na bismil ka apne

ग़ज़ल

तड़पना भी देखा न बिस्मिल का अपने

मीर तक़ी मीर

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तड़पना भी देखा न बिस्मिल का अपने
मैं कुश्ता हूँ अंदाज़-ए-क़ातिल का अपने

न पूछो कि अहवाल ना-गुफ़्ता-बह है
मुसीबत के मारे हुए दिल का अपने

दिल-ए-ज़ख़्म-ख़ुर्दा के और इक लगाई
मुदावा क्या ख़ूब घायल का अपने

जो ख़ोशा था सद ख़िर्मन-ए-बर्क़ था याँ
जलाया हुआ हूँ मैं हासिल का अपने

टक अबरू को मेरी तरफ़ कीजे माइल
कभू दिल भी रख लीजे माइल का अपने

हुआ दफ़्तर-ए-क़ैस आख़िर अभी याँ
सुख़न है जुनूँ के अवाएल का अपने

बनाएँ रखें मैं ने आलम में क्या क्या
हूँ बंदा ख़यालात बातिल का अपने

मक़ाम-ए-फ़ना वाक़िए में जो देखा
असर भी न था गोर मंज़िल का अपने