ताक़त नहीं है जी में नय अब जिगर रहा है 
फिर दिल सितम-रसीदा इक ज़ुल्म कर रहा है 
मारा है किस को ज़ालिम उस बे-सलीक़गी से 
दामन तमाम तेरा लोहू में भर रहा है 
पहुँचा था तेग़ खींचे मुझ तक जो बोले दुश्मन 
क्या मारता है उस को ये आफी मर रहा है 
आने कहा है मेरे ख़ुश-क़द ने रात गुज़रे 
हंगामा-ए-क़यामत अब सुब्ह पर रहा है 
चल हम-नशीं कि देखें आवारा 'मीर' को टक 
ख़ाना-ख़राब वो भी आज अपने घर रहा है
        ग़ज़ल
ताक़त नहीं है जी में नय अब जिगर रहा है
मीर तक़ी मीर

