क़यामत हैं ये चस्पाँ जामे वाले
गुलों ने जिन की ख़ातिर ख़िरक़े डाले
वो काला चोर है ख़ाल-ए-रुख़-ए-यार
कि सौ आँखों में दिल हो तो चुरा ले
नहीं उठता दिल-ए-महज़ूँ का मातम
ख़ुदा ही इस मुसीबत से निकाले
कहाँ तक दूर बैठे बैठे कहिए
कभू तो पास हम को भी बुला ले
दिला बाज़ी न कर उन गेसुओं से
नहीं आसाँ खिलाने साँप काले
तपिश ने दिल जिगर की मार डाला
बग़ल में दुश्मन अपने हम ने पाले
न महके बू-ए-गुल ऐ काश यक-चंद
अभी ज़ख़्म-ए-जिगर सारे हैं आले
किसे क़ैद-ए-क़फ़स में याद गुल की
पड़े हैं अब तो जीने ही के लाले
सताया 'मीर' ग़म-कश को किन्हों ने
कि फिर अब अर्श तक जाते हैं नाले
ग़ज़ल
क़यामत हैं ये चस्पाँ जामे वाले
मीर तक़ी मीर