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खोवें हैं नींद मेरी मुसीबत बयानीयाँ | शाही शायरी
khowen hain nind meri musibat bayaniyan

ग़ज़ल

खोवें हैं नींद मेरी मुसीबत बयानीयाँ

मीर तक़ी मीर

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खोवें हैं नींद मेरी मुसीबत बयानीयाँ
तुम भी तो एक रात सुनो ये कहानियाँ

क्या आग दे के तौर को की तर्क सर-कशी
उस शो'ले की वही हैं शरारत की बानीयाँ

सोहबत रखा किया वो सफिया-ओ-ज़लाल से
दिल ही में ख़ूँ हुआ कीं मिरी नुक्ता-दानियाँ

हम से तो कीने ही की अदाएँ चली गईं
बे-लुत्फ़ियाँ यही यही ना-मेहरबानियाँ

तलवार के तले ही गया अहद-ए-इम्बिसात
मर मर के हम ने काटी हैं अपनी जवानियाँ

गाली सिवाए मुझ से सुख़न मत किया करो
अच्छी लगे हैं मुझ को तिरी बद-ज़बानियाँ

ग़ैरों ही के सुख़न की तरफ़ गोश-ए-यार थे
इस हर्फ़-ए-ना-शिनो ने हमारी न मानियां

ये बे-क़रारियाँ न कभू इन नय-देखीयाँ
जाँ-काहीयाँ हमारी बहुत सहल जानियाँ

मारा मुझे भी सान के ग़ैरों में उन ने 'मीर'
क्या ख़ाक में मिलाईं मिरी जाँ-फ़िशानीयाँ