मिलता नहीं कोई भी ख़रीदार इश्क़ में
रुस्वा हुए हैं बर-सर-ए-बाज़ार इश्क़ में
मंज़िल मिली न मरहला-ए-दिल ही तय हुआ
दश्त-ए-जुनूँ को जानिए दीवार-ए-इश्क़ में
उस नाफ़ा-ए-निगाह से पागल हुए तो क्या
ज़ंजीर है ये दर्द का आज़ाद इश्क़ में
अब तक तिरे ख़याल से नमनाक है ये आँख
सर्फ़ इस क़दर हुआ हूँ गुनहगार इश्क़ में
फ़रियाद कर रहा हूँ जुदाई के दश्त में
कोई नहीं शरीक-ए-ग़म-ए-यार इश्क़ में
मैं कुंज-ए-आफ़ियत में रहा उम्र-भर मगर
ख़ुद से हुआ हूँ बर-सर-ए-पैकार इश्क़ में
हाथ आ गई कलीद-ए-तिलिस्म-ए-निगाह क्या
खुलने लगे हैं हुस्न के असरार-ए-इश्क़ में
हैरानियों के ज़ख़्म का मरहम कहाँ 'नदीम'
दिल सेहर-ए-दर्द से हुआ बेदार इश्क़ में

ग़ज़ल
मिलता नहीं कोई भी ख़रीदार इश्क़ में
सलाहुद्दीन नदीम