EN اردو
मिलों के शहर में घटता हुआ दिन सोचता होगा | शाही शायरी
milon ke shahr mein ghaTta hua din sochta hoga

ग़ज़ल

मिलों के शहर में घटता हुआ दिन सोचता होगा

फ़ज़्ल ताबिश

;

मिलों के शहर में घटता हुआ दिन सोचता होगा
धुएँ को जीतने वालों का सूरज दूसरा होगा

अगर मर कर फिर उठना है तो मरने की ख़ुशी क्या है
बदन खोने का ग़म जीने की ख़ुशियों से सिवा होगा

सुना है ये ज़मीं उड़ती फिरेगी रूई की सूरत
तमाशा करने वाला ही तमाशा देखता होगा

मैं चिड़ियों को उलझते देख कर लड़ता समझता हूँ
मगर सच्चाई क्या है ये उन्हीं से पूछना होगा

तुम्हारा जिस्म मेरी आग में तप कर निखरता है
मगर इक रोज़ मेरा जिस्म ठंडा पड़ गया होगा

मुझे ख़ुशबू लपेटे जिस्म कुछ अच्छे नहीं लगते
मगर उस को मिरा ख़ाली बदन भी काटता होगा