मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इशरत-ए-शबाना
यही ज़िंदगी मुसीबत यही ज़िंदगी मसर्रत
यही ज़िंदगी हक़ीक़त यही ज़िंदगी फ़साना
कभी दर्द की तमन्ना कभी कोशिश-ए-मुदावा
कभी बिजलियों की ख़्वाहिश कभी फ़िक्र-ए-आशियाना
मिरे क़हक़हों की ज़द पर कभी गर्दिशें जहाँ की
मिरे आँसुओं की रौ में कभी तल्ख़ी-ए-ज़माना
मिरी रिफ़अ'तों से लर्ज़ां कभी मेहर-ओ-माह ओ अंजुम
मिरी पस्तियों से ख़ाइफ़ कभी औज-ए-ख़ुसरवाना
कभी मैं हूँ तुझ से नालाँ कभी मुझ से तू परेशाँ
कभी मैं तिरा हदफ़ हूँ कभी तू मिरा निशाना
जिसे पा सका न ज़ाहिद जिसे छू सका न सूफ़ी
वही तार छेड़ता है मिरा सोज़-ए-शाइराना
ग़ज़ल
मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
मुईन अहसन जज़्बी