मिले हैं प्यार के लम्हे तो उन में खो जाएँ
नसीब जाग रहा है तो आओ सो जाएँ
सर-ए-बहिश्त ग़ज़ल कौसर-ए-मोहब्बत में
उठो कि क़र्ज़ अदा तिश्नगी के हो जाएँ
ये अश्क अश्क गुहर राएगाँ न जाएँगे
जो उन को शे'र की लड़ियों में हम पिरो जाएँ
बहार हो कि ख़िज़ाँ कार-गाह-ए-हस्ती में
उन्हें किसी से ग़रज़ क्या जो तेरे हो जाएँ
चमन नसीब ज़माना करेगा याद हमें
ज़मीन-ए-शेर में 'सहबा' ख़याल बो जाएँ

ग़ज़ल
मिले हैं प्यार के लम्हे तो उन में खो जाएँ
सहबा अख़्तर