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मिला के हाथ मसर्रत कशीद की जाए | शाही शायरी
mila ke hath masarrat kashid ki jae

ग़ज़ल

मिला के हाथ मसर्रत कशीद की जाए

फ़ारूक़ रहमान

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मिला के हाथ मसर्रत कशीद की जाए
वो सामने नज़र आए तो ईद की जाए

जुनून-ए-इश्क़ कहाँ नाप-तोल जाने है
अगर हुई है मोहब्बत शदीद की जाए

वहाँ तो अम्न के सज्दों की नूर-पाशी थी
कहा था किस ने कि मस्जिद शहीद की जाए

चलन वफ़ा का तुम्हारी सरिश्त में ही नहीं
तो किस उमीद पे तुम से उम्मीद की जाए

ख़ुलूस-ओ-प्यार से पत्थर पिघलते देखे हैं
अना है दुश्मन-ए-जानाँ मुरीद की जाए

रिवायतों का भी अपना मिज़ाज है 'फ़ारूक़'
ग़ज़ल ज़रूरी नहीं है जदीद की जाए