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मिला जो ख़ार तो दिल में बिठा लिया मैं ने | शाही शायरी
mila jo Khaar to dil mein biTha liya maine

ग़ज़ल

मिला जो ख़ार तो दिल में बिठा लिया मैं ने

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

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मिला जो ख़ार तो दिल में बिठा लिया मैं ने
हर एक फूल से दामन बचा लिया मैं ने

नज़र में उन का सरापा बसा लिया मैं ने
ग़म-ए-फ़िराक़ को आसाँ बना लिया मैं ने

न पूछ मुझ से मिरे फ़र्त-ए-शौक़ का आलम
हर एक ग़म को तिरा ग़म बना लिया मैं ने

भड़क के बुझ गया जब उस का हर एक दिया
चराग़-ए-दिल को शब-ए-ग़म जला लिया मैं ने

ये क्या ख़बर थी दहकते हुए हैं अंगारे
समझ के फूल जिन्हें सर चढ़ा लिया मैं ने

फ़रेब-कार रफ़ीक़ों की अब नहीं हाजत
कि अपने सीने से ग़म को लगा लिया मैं ने

समझ लिया जिसे औरों ने 'अश्क' ना-मुम्किन
उसी को अपनी तमन्ना बना लिया मैं ने