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मिला है तख़्त किसे कौन तख़्त पर न रहा | शाही शायरी
mila hai taKHt kise kaun taKHt par na raha

ग़ज़ल

मिला है तख़्त किसे कौन तख़्त पर न रहा

माज़िद सिद्दीक़ी

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मिला है तख़्त किसे कौन तख़्त पर न रहा
ये बात और है जारी था जो सफ़र न रहा

शब-ए-सियाह में भी जो था रौशनी का सफ़ीर
किनार-ए-बाम से वो झाँकता क़मर न रहा

लगी थीं जिस पे निगाहें न जाने किस किस की
मरीज़ पर वही तावीज़ कार-गर न रहा

यक़ीं था जो भी वो अब गर्द-ए-इश्तिबाह में है
ये क्या हुआ कि कोई शख़्स मो'तबर न रहा

बड़े-बड़ों पे भी 'माजिद' ब-नाम-ए-अर्ज़-ए-वतन
जो ए'तिमाद था अल-क़िस्सा मुख़्तसर न रहा