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मिल जाए अमाँ दुनिया में पल भर नहीं लगता | शाही शायरी
mil jae aman duniya mein pal bhar nahin lagta

ग़ज़ल

मिल जाए अमाँ दुनिया में पल भर नहीं लगता

तस्लीम अहमद तसव्वुर

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मिल जाए अमाँ दुनिया में पल भर नहीं लगता
पा जाएँ सुकूँ दाइमी मर कर नहीं लगता

पानी की तलब लाई कहाँ से ये कहाँ पे
सहरा सा तो लगता है ये सागर नहीं लगता

इस कूचा-ए-दिलबर में ये क्या ख़ाक उड़ी है
वो तो नहीं उस का कोई हम-सर नहीं लगता

इक रोज़ न मिल पाएँ गुज़ारा नहीं होता
हर रोज़ ही मिलते हैं ये मिल कर नहीं लगता

हर दिन की तरह दिन भी ये काटे से कटेगा
ये शब भी गुज़र जाएगी अक्सर नहीं लगता

कुछ दिन से अजब बे-कली घेरे है तसव्वुर
कुछ दिन से मुझे अपना ही घर घर नहीं लगता