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'मीर'-ओ-'ग़ालिब' की तरह सेहर-बयाँ से निकले | शाही शायरी
mir-o-ghaalib ki tarah sehr-bayan se nikle

ग़ज़ल

'मीर'-ओ-'ग़ालिब' की तरह सेहर-बयाँ से निकले

शहाब अख़्तर

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'मीर'-ओ-'ग़ालिब' की तरह सेहर-बयाँ से निकले
शे'र ऐसा भी कोई दिल से ज़बाँ से निकले

अश्क से भीगे हुए मैं मिरे अल्फ़ाज़-ए-ग़ज़ल
आग से कोई लपक जैसे धुआँ से निकले

कोई सैलाब भी रोके से नहीं रुकता है
रास्ता था ही नहीं फिर भी वहाँ से निकले