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मेरी वहशत का तिरे शहर में चर्चा होगा | शाही शायरी
meri wahshat ka tere shahr mein charcha hoga

ग़ज़ल

मेरी वहशत का तिरे शहर में चर्चा होगा

शाज़ तमकनत

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मेरी वहशत का तिरे शहर में चर्चा होगा
अब मुझे देख के शायद तुझे धोका होगा

साफ़ रस्ता है चले आओ सू-ए-दीदा-ओ-दिल
अक़्ल की राह से आओगे तो फेरा होगा

कौन समझेगा भला हुस्न-ए-गुरेज़ाँ की अदा
मेरे ईसा ने मिरा हाल न पूछा होगा

वज्ह-ए-बे-रंगी-ए-हर-शाम-ओ-सहर क्या होगी
मैं ने शायद तुझे हर रंग में देखा होगा

अब कहीं तू ही डुबोवे हमें ऐ मौज-ए-सराब
वर्ना फिर शिकवा-ए-पायाबी-ए-दरिया होगा

कोई तदबीर बता ऐ दिल-ए-आज़ार-पसंद
उस को जी-जाँ से भुलाने में तो अर्सा होगा

हुस्न की ख़ल्वत-ए-सादा भी है सद-बज़्म-तराज़
इश्क़ महफ़िल में भी होगा तो अकेला होगा

झुटपुटा छाया है कौन आया है दरवाज़े पर
देखना 'शाज़' कोई सुब्ह का भूला होगा