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मेरी महफ़िल में अगर चाँद सितारे होते | शाही शायरी
meri mahfil mein agar chand sitare hote

ग़ज़ल

मेरी महफ़िल में अगर चाँद सितारे होते

जुनैद अख़्तर

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मेरी महफ़िल में अगर चाँद सितारे होते
वो भी क़ुर्बान मिरी जान तुम्हारे होते

मुझ को सहराओं से जाने की इजाज़त होती
फिर ये दरिया न समुंदर न किनारे होते

वो तो बस झूटी तसल्ली को कहा था तुम से
हम तो अपने भी नहीं, ख़ाक तुम्हारे होते

उन के पीछे भी कोई ग़म का समुंदर होगा
वर्ना आँसू न कभी आँख में खारे होते

तेरे वादों को भी बच्चों की तरह से रखता
मुझ से होते तो सभी राज दुलारे होते

तुम नहीं थे तो मिरी रह गई इज़्ज़त 'अख़्तर'
मैं तो पड़ जाता अगर पाँव तुम्हारे होते

बात सादा थी मगर देर में समझे 'अख़्तर'
दूर क्यूँ होते अगर पास तुम्हारे होते