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मेरी ख़्वाहिश न सही तेरा इरादा है ज़रूर | शाही शायरी
meri KHwahish na sahi tera irada hai zarur

ग़ज़ल

मेरी ख़्वाहिश न सही तेरा इरादा है ज़रूर

इक़बाल अशहर कुरेशी

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मेरी ख़्वाहिश न सही तेरा इरादा है ज़रूर
सख़्त मुश्किल है कि तुझ सा मुझे होना है ज़रूर

कौन सा रंज हुआ होश नहीं है लेकिन
अपने नाख़ुन से ही खुर्चा हुआ सीना है ज़रूर

अब वो पहली सी फ़ज़ाओं में कुदूरत न रही
हाँ मिरी आँख में हल्का सा धुँदलका है ज़रूर

हम को इस दौर की तारीख़ तो लिखनी होगी
एक छोटा सा क़लम ही सही अपना है ज़रूर

रो'ब उस लफ़्ज़ का रहता है मुसल्लत 'अशहर'
बे-नियाज़ी में भी मा'बूद जो मेरा है ज़रूर