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मेरी इस दीवानगी की अपनी इक रफ़्तार है | शाही शायरी
meri is diwangi ki apni ek raftar hai

ग़ज़ल

मेरी इस दीवानगी की अपनी इक रफ़्तार है

मधुवन ऋषि राज

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मेरी इस दीवानगी की अपनी इक रफ़्तार है
इश्क़ में हर आदमी की अपनी इक रफ़्तार है

कोई आशिक़ कोई मय-कश कोई कोई मुफ़लिस है यहाँ
हर किसी की ख़ुद-कुशी की अपनी इक रफ़्तार है

आप आगे हम हैं पीछे पर नहीं हम को गिला
हर किसी की ज़िंदगी की अपनी इक रफ़्तार है

कौन ढूँढे दोस्त फिर से कौन फिर से खाए ज़ख़्म
हर किसी की दोस्ती की अपनी इक रफ़्तार है

तेज़ क़दमों से बढ़े जाते हैं हम सू-ए-सराब
इस मुसलसल तिश्नगी की अपनी इक रफ़्तार है