मेरी बर्बादियों की ये तस्वीर
गर्दिश-ए-वक़्त की है एक लकीर
हुस्न-ए-तदबीर की निगाहों से
देख तो अपने बख़्त की तहरीर
दूर कर दे दिलों की तारीकी
ऐ जमाल-ए-ख़ुलूस की तनवीर
तुम समझते हो जिन को मीर-ए-चमन
ज़ुल्फ़-ए-हिर्स-ओ-हवा के हैं वो असीर
खा रहा हूँ फ़रेब-ए-आज़ादी
देख कर पाँव की नई ज़ंजीर
झूटी तौक़ीर के लिए अक्सर
बेच देते हैं लोग अपना ज़मीर
कल भी आ जाएगा मगर 'ज़ख़्मी'
कितनी धुँदली है आज की तस्वीर
ग़ज़ल
मेरी बर्बादियों की ये तस्वीर
ज़ख़मी हिसारी