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मेरी आँखों के समुंदर में जलन कैसी है | शाही शायरी
meri aankhon ke samundar mein jalan kaisi hai

ग़ज़ल

मेरी आँखों के समुंदर में जलन कैसी है

वसी शाह

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मेरी आँखों के समुंदर में जलन कैसी है
आज फिर दिल को तड़पने की लगन कैसी है

अब किसी छत पे चराग़ों की क़तारें भी नहीं
अब तिरे शहर की गलियों में घुटन कैसी है

बर्फ़ के रूप में ढल जाएँगे सारे रिश्ते
मुझ से पूछो कि मोहब्बत की अगन कैसी है

मैं तिरे वस्ल की ख़्वाहिश को न मरने दूँगा
मौसम-ए-हिज्र के लहजे में थकन कैसी है

रेगज़ारों में जो बनती रही काँटों की रिदा
इस की मजबूर सी आँखों में करन कैसी है

मुझे मा'सूम सी लड़की पे तरस आता है
उसे देखो तो मोहब्बत में मगन कैसी है