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मेरे उस के दरमियाँ ये फ़ासला अपनी जगह है | शाही शायरी
mere uske darmiyan ye fasla apni jagah hai

ग़ज़ल

मेरे उस के दरमियाँ ये फ़ासला अपनी जगह है

अशअर नजमी

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मेरे उस के दरमियाँ ये फ़ासला अपनी जगह है
आहटों और दस्तकों का सिलसिला अपनी जगह है

सीना-ए-आवाज़ में है बर्फ़ की तलवार गुम
बे-सदा गुम्बद का लेकिन मसअला अपनी जगह है

मैं चमकती रेत की अटखेलियों का हूँ असीर
एड़ियों का इज़्तिराबी मश्ग़ला अपनी जगह है

ख़ुद-फ़रेबी का भरम टूटा चलो अच्छा हुआ
ऊँघती बेदारियों का मरहला अपनी जगह है