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मेरे उस के दरमियाँ जो फ़ासला रक्खा गया | शाही शायरी
mere uske darmiyan jo fasla rakkha gaya

ग़ज़ल

मेरे उस के दरमियाँ जो फ़ासला रक्खा गया

हैदर क़ुरैशी

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मेरे उस के दरमियाँ जो फ़ासला रक्खा गया
उस के तय करने को भी इक रास्ता रक्खा गया

अक्स खो जाएँ अगर हल्का सा कंकर भी गिरे
पानियों में एक ऐसा आइना रक्खा गया

सब तक़ाज़े वैसे पूरे हो गए इंसाफ़ के
बस फ़क़त महफ़ूज़ मेरा फ़ैसला रक्खा गया

ना-रसाई की अज़िय्यत ही रही अपना नसीब
मिल गई रूहें तो जिस्मों को जुदा रक्खा गया

भर के आँखों में सुलगते ख़्वाब उस की याद के
मुझ को सोते में भी 'हैदर' जागता रक्खा गया