मेरे सर से क्या ग़रज़ सरकार को
देखिए अपने दर-ओ-दीवार को
ये घटा ऐसी घटा इतनी घटा
मय हलाल ऐसे में है मय-ख़्वार को
धमकियाँ देते हो क्या तलवार की
हम लगाते हैं गले तलवार को
अपनी अपनी सब दिखाते हैं बहार
गुल भी गुलशन से चले बाज़ार को
ताक़ से मीना उतार आई बहार
ताक़ पर रख शैख़ इस्तिग़फ़ार को
ढूँढता फिरता है कू-ए-ग़ैर में
दिल 'मुबारक' को 'मुबारक' यार को
ग़ज़ल
मेरे सर से क्या ग़रज़ सरकार को
मुबारक अज़ीमाबादी

