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मेरे लिए वो शख़्स मुसीबत भी बहुत है | शाही शायरी
mere liye wo shaKHs musibat bhi bahut hai

ग़ज़ल

मेरे लिए वो शख़्स मुसीबत भी बहुत है

रूही कंजाही

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मेरे लिए वो शख़्स मुसीबत भी बहुत है
सच ये भी है उस की मुझे आदत भी बहुत है

मिलता है अगर ख़्वाब में मिलता तो है कोई
उस की ये इनायत ये मुरव्वत भी बहुत है

उस ने मुझे समझा था कभी प्यार के क़ाबिल
ख़ुश रहना हो तो इतनी मसर्रत भी बहुत है

उल्फ़त का निभाना तो बड़ी बात है लेकिन
इस दौर में इज़हार-ए-मोहब्बत भी बहुत है

जाने पे ब-ज़िद है तो कहूँ इस के सिवा क्या
ऐ दोस्त तिरी इतनी रिफ़ाक़त भी बहुत है

इक फ़ासला क़ाएम है ब-दस्तूर ब-हर-हाल
हासिल मुझे उस शख़्स की क़ुर्बत भी बहुत है

जीना तो पड़ेगा ही बग़ैर उस के भी 'रूही'
हालाँकि मुझे उस की ज़रूरत भी बहुत है