मेरे लिए वजूद का दरिया सराब था
नाकामियों के बाब में मैं कामयाब था
बख़्शे हैं मुझ को फूल मोहब्बत की आग ने
मेरे लिए सुकूँ का सबब इज़्तिराब था
मैं ने सफ़ेद लफ़्ज़ लिखे और सच लिखे
मेरी सदाक़तों का बयाँ बे-ख़िज़ाब था
इस्याँ शुमार थे जो फ़रिश्ते वो थक गए
इक फ़र्द-ए-सद-गुनाह से मैं बे-हिसाब था
क्या मुझ से इंतिख़ाब की करता है आरज़ू
मैं तो निगाह-ए-शे'र का ख़ुद इंतिख़ाब था
हिज्र-ओ-विसाल ख़त्म हुए ठीक है ये खेल
तुझ को भी नागवार मुझे भी अज़ाब था
बे-दाग़ कह रहा है जो अपने जमाल को
कल शब मिरी बग़ल में यही आफ़्ताब था
मेरी किताब रस्म-ए-जहाँ है वगर्ना मैं
वो साहिब-ए-किताब हूँ जो बे-किताब था
'सहबा' मिरे वजूद पे हर मय-कदे से दूर
छाया था वो सुरूर कि पानी शराब था

ग़ज़ल
मेरे लिए वजूद का दरिया सराब था
सहबा अख़्तर